उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोबर गद्गद हो गया। आज वह किसी लायक़ होता, तो दादा और अम्माँ को सोने से मढ़ देता और कहता -- अब तुम कुछ परवा न करो, आराम से बैठे खाओ ...

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